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(8 मार्च/ अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस)
नवलोक महिला पंचायत में आज 8 मार्च/ अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया जिसमे नवलोक महिला पंचायत के स्टाफ व् महिला पंचायत के मेम्बर व् वालंटियर भी शामिल हुए ! सभी मेम्बर व् वालंटियर को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामना दी गई व् इससे संवंधित उपस्थित सभी मेम्बर व् वालंटियर बताया गया की अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस सबसे पहले अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर 28 फ़रवरी 1910 को मनाया गया. उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना था, क्योंकि उस समय अधिकतर देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था. 1917 में रूस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिए हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया. यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी. ज़ार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया. प्रसिद्ध जर्मन एक्टिविस्ट क्लारा ज़ेटकिन के प्रयासों के कारण इण्टर नेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस ने वर्ष 1910 में महिला दिवस के अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप और इस दिन पब्लिक हॉलीडे को सहमति दी. 19 मार्च,1911 को पहला IWD आस्ट्रिया, डेनमार्क और जर्मनी में आयोजित किया गया. बाद में महिला दिवस की तिथि वर्ष 1921 में बदलकर 8 मार्च कर दी गई. तब से महिला दिवस पूरी दुनिया में 8 मार्च को ही मनाया जाता है. महिला दिवस सशक्तिकरण के रूप में मनाया जाता है. परन्तु महिला का सशक्तिकरण तब ही सम्भव है जब उसे बचपन से ही प्रत्येक क्षेत्र में समर्थ बनाया जाए. बेटी को मातृ स्वरूप मानना, यह केवल कल्पना नहीं है, यह प्रत्यक्ष है कि बचपन से ही माता के गुण होते हैं. यही बेटियां आगे जाकर नयी पीढ़ी को जन्म देती हैं,पाल पोस कर बड़ा करते हुए और उनको संस्कारित करते हुए सर्वांगीण उन्नति की दृष्टि से प्रयास करती हैं. ईश्वर ने जो गुण स्त्रियों को दिए हैं वह पुरुषों को नहीं. बेटियों को ईश्वर ने समर्थ शाली ही बनाया है. पर समाज ने उसे कमज़ोर कर दिया है. शारीरिक सहनशक्ति और कार्य करने की क्षमता बेटियों में कम नहीं होती. वह बाहर भी कार्य करती हैं और घर का कार्य भी सहजभाव में करतीं हैं. उनमें सामर्थ्य का अभाव नहीं होता, लेकिन बेटियों को समाज असमर्थ बना देता है. उस पर तरह-तरह की बंदिशें लगाकर, उसे शिक्षा से वंचित रखकर तथा आगे बढ़ने के अवसरों को दूर रखकर समाज बेटियों को असमर्थ कर देता है.एक प्रसिद्ध कहावत है कि एक युवक जब कुछ सीखता है तो केवल एक ही व्यक्ति सीखता है. परन्तु जब एक बेटी सीखती है तो सारा परिवार सीखता है. महिला प्रेम, करुणा, साहस और कर्तव्य निष्ठा की मिसाल है. महिलाओं के योगदान के बिना सामाजिक व राष्ट्रीय उत्थान असम्भव है. आऔ हम सब मिलकर बेटियों को शिक्षा, प्रशिक्षण व विकास के समुचित अवसर प्रदान करें. तभी महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य को वास्तविक रूप से हासिल करना संभव होगा. संपूर्ण नारी शक्ति को नमन्।